सर्दियों में अमृत था वही महाशिवरात्रि के बाद बनने लगता है विष जाने पूरी जानकारी
.देहरादून = जो सर्दियों में अमृत था वही महाशिवरात्रि के बाद बनने लगता है विष। सर्दियों में अमृत होता है –
पेटभर भोजन, गरिष्ठ (भारी) भोजन, तला, गर्म मसालेदार, गुड़, सोंठ, सूखे मेवे, दही, उड़द, ताम्बे का पानी, बैंगन, गोभी, मटर, मूली, गाजर, शकरकंद, पालक, मेथी ….
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महाशिवरात्रि से प्रारंभ कर होली तक इन्हें पूरी तरह त्याग दीजिये, अन्यथा आप अस्थमा, चर्म रोग, हार्ट ब्लॉकेज, खून की खराबी, मोटापा, डाइबिटीज, पीलिया, मलेरिया, टाइफाइड, अल्सर, सिस्ट, …… के शिकार हो सकते हैं।
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महाशिवरात्रि से
*भोजन की मात्रा* : पेट को 20% खाली रखें। व्रत-उपवास प्रारम्भ कर दीजिए।
*भोजन का प्रकार* : अब गरिष्ठ भोजन न करें। जैसे; गोंद, उड़द, मेथी, सोंठ, तिल के लड्डू न खायें। बादाम का हलवा, सूखे मेवे की मिठाई न खायें।
*चिकनाई* : अब तला हुआ खाना ही हो तो तेल में नहीं, देशी गाय के घी में तला हुआ खा सकते हैं।
*मसाला* : गर्म मसालों की जगह सादे मसालों का उपयोग करें। सोंठ की जगह अदरक, लाल मिर्च की जगह हरी मिर्च का उपयोग करें।
*मीठा* : गुड़ की जगह बिना केमिकल की देशी शक्कर, खांड, मिश्री का उपयोग करें।
*सूखे मेवे* : सूखे मेवे रात को पानी में भिगाकर सुबह खायें।
*दही* : दही की जगह दूध या छाछ, मट्ठा, लस्सी, रायता आदि का सेवन करें।
*दाल* : उड़द, तुवर, मसूर की दाल की जगह मूंग, मोठ का उपयोग करें।
*अन्न* : बाजरे, मक्के की जगह जौ, ज्वारी की रोटी खायें। बाजरे की ठंडी रोटी, ठंडी राबड़ी खा सकते हैं।
*पानी* : तांबे के पानी की जगह मिट्टी के घड़े का पानी पीयें।
*सब्जी* : सब्जियों में परवल, लौकी, पेठा, कद्दू, टिन्डोली, तुरई आदि खायें। गाजर खाना हो तो हलवे के रूप में खायें।
*फल* : भोजन में फल अधिक खायें। अक्षय तृतीया तक आम न खायें। विदेशी फल – ड्रेगन फ्रूट, कीवी …. कम खायें।
*विशेष पथ्य* : नींबू का सेवन अधिक करें। ठंडाई, शर्बत पीयें।
*मालिश* : सरसों के तेल की जगह नारियल के तेल से मालिश करें।
*नींद* : नींद कम कर दें। दिन में न सोयें। सुबह जल्दी उठें।
*विशेष* : नाक में देशी गाय का घी डालें। पेड़ू व ललाट पर अंगराग का लेप लगायें।
*शुद्धि क्रिया* : रोज सुबह नमक का पानी पीकर वमन करें।
*काढ़ा* : सोंठ, लौंग, अजवाइन, हल्दी, गुड़, …… के काढ़े की जगह अदरक, धनिया, जीरा, सौंफ, नींबू, मिश्री, ….. के काढ़े लें।
*व्यायाम* पसीना बहने तक व्यायाम अवश्य करें।
*स्नान* पानी में 5ml गोमूत्र डालकर स्नान करें।
*वसंत ऋतु की औषधि* : साँस के रोगी, चर्मरोगी, हड्डियों के रोगी, जोड़ों के दर्द वाले गोमूत्रासव लें।