उत्तराखण्ड
लंपी वायरस ने बढ़ाई राज्य सरकार की चिंता
-चार दिनों में तीन हजार से अधिक मामले आए सामने
देहरादून: प्रदेश में लंपी वायरस के बढ़ते मामलों ने सरकार व पशु चिकित्सा विभाग की चिंता बढ़ा दी है। पिछले चार दिनों में लंपी वायरस के तीन हजार से अधिक मामले सामने आए हैं| जिनमे से 32 पशुओं की म्रत्यु हो गयी| इसका ज्यादा प्रकोप कुमाऊं क्षेत्र में हो रहा है। जिसको देखते हुए राज्य में गो व महिषवंशीय पशुओं के परिवहन, प्रदर्शनी पर एक माह के लिए रोक लगा दी गई है|
वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए सरकार ने पशुओं के टीकाकरण और स्थिति पर नजर रखने को जिला स्तर पर नोडल अधिकारियों की तैनाती की है। पशुपालन विभाग के कार्मिकों की छुट्टियां रद करने के साथ ही पशु चिकित्सकों की नई प्रतिनियुक्ति पर भी रोक लगा दी गई है। पशु टीकाकरण पूर्ण करने को 15 दिन की अवधि तय की गई है। साथ ही सभी जिलों के लिए मानक प्रचालन कार्यविधि (एसओपी) जारी किया गया है।
पशुपालकों की सुविधा के लिए टोल फ्री नंबर जारी: पशुपालन मंत्री
पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने बुधवार को विधानसभा भवन स्थित सभागार में पत्रकारों से बातचीत के दौरान बताया कि राज्य में पशुओं में लंपी त्वचा रोग के बढ़ते मामलों को सरकार ने गंभीरता से लिया है। पशुओं का टीकाकरण तेजी से चल रहा है। पशुपालकों की सुविधा के लिए टोल फ्री नंबर जारी किए गए हैं। गोवंशीय पशुओं में मुख्य रूप से फैलने वाले इस रोग के प्रसार में मक्खी, मच्छर संवाहक बनते हैं। ऐसे में स्वच्छता पर विशेष ध्यान देने को कहा गया है|
उन्होंने बताया कि अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली, चंपावत, पिथौरागढ़, नैनीताल, रुद्रप्रयाग व टिहरी जिलों में लंपी रोग से पीडि़त 1669 पशु ठीक हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि सभी जिलों को मांग के अनुसार वैक्सीन की 2.38 लाख डोज मुहैया कराई गई हैं, जबकि आकस्मिकता के दृष्टिगत 80 हजार डोज सुरक्षित रखी गई हैं। टीकाकरण अभियान के लिए टीमें गठित की गई हैं। राज्य में गो व महिषवंशीय पशुओं के जनपदीय, अंतरजनपदीय, अंतरराज्यीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर परिवहन पर माहभर के लिए रोक लगाई गई है|
पशुपालन मंत्री ने कहा कि लंपी रोग के फैलाव से दुग्ध उत्पादन पर असर पडऩा स्वाभाविक है। इसे देखते हुए दुग्ध फेडरेशन से इस बारे में रिपोर्ट मांगी गई है। बहुगुणा ने बताया कि पशु टीकाकरण में जुटी टीमें पशुपालकों को पशुओं का बीमा कराने को भी प्रेरित कर रही हैं। पशु बीमा के प्रीमियम में पर्वतीय क्षेत्र में 75 प्रतिशत और मैदानी क्षेत्र में 60 प्रतिशत राशि सरकार वहन करती है।