लम्पी वायरस की रोकथाम के लिए पशुपालक मंत्री ने की समीक्षा बैठक, पशुपालकों के लिए एसओपी जारी
देहरादून: देशभर में गायों का कोरोना माने जाने वाली बीमारी लम्पी वायरस दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रहही है I यह न सिर्फ पशुपालकों के लिए बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए भी बड़ी चुनौती है I प्रदेश में अब तक 20 हजार 505 पशु लंपी बीमारी से ग्रसित पाए गए। इसमें देहरादून व हरिद्वार जिले के 17500 मामले हैं। इलाज के बाद 8028 पशु स्वस्थ हुए हैं। जबकि 341 पशुओं की मौत हुई है।
उत्तराखंड में लंपी रोग की रोकथाम व बचाव के लिए सरकार ने मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। रोग से ग्रसित पशुओं के इलाज के लिए 80 अतिरिक्त पशु प्रसार अधिकारियों की तैनाती की जा रही है। प्रदेश में रोग से पशुओं की मृत्यु दर 1.6 प्रतिशत और ठीक होने की दर 40 प्रतिशत है। इसके साथ ही 26 सितंबर से प्रदेश में रोग से पशुओं को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।
बृहस्पतिवार को पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने विधानसभा स्थित सभागार में विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक कर लंपी रोकथाम की समीक्षा की। बैठक के बाद प्रेसवार्ता में विभागीय मंत्री ने कहा कि प्रदेश में अब तक 20 हजार 505 पशु लंपी बीमारी से ग्रसित पाए गए। इसमें देहरादून व हरिद्वार जिले के 17500 मामले हैं। इलाज के बाद 8028 पशु स्वस्थ हुए हैं। जबकि 341 पशुओं की मौत हुई है।
पशुपालन मंत्री ने कहा कि प्रदेश में लंपी रोग की निगरानी के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त कि गए हैं। पशुपालन विभाग के पास 6 लाख गोटपॉक्स टीके उपलब्ध हैं। 5.80 लाख टीके जिलों में वितरित किए गए हैं। चार लाख टीकों की आर्डर केंद्र को भेजा गया है।
उन्होंने पशुपालकों से आग्रह किया कि पशुओं का बीमा अवश्य कराएं, ताकि पशु की मौत होने पर उचित मुआवजा मिल सके। पशुपालकों की सुविधा के लिए सरकार की ओर से टोल फ्री नंबर 18001208862 किया गया। इस पर लंपी रोग के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा लंपी रोग ग्रस्त क्षेत्रों से पशुओं के व्यापार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। इस मौके पर सचिव पशुपालन, डॉ. बीवीआरसी पुरूषोत्तम मौजूद थे।
पशुपालकों के लिए एसओपी जारी
-लंपी रोग से ग्रसित पशु को अन्य पशुओं से अलग रखें।
– गौशाला में मच्छर, मक्खियों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाश दवाईयों का छिड़काव या धुआं करें।
– 25 लीटर पानी में फिटकरी व नीम की पत्ते का पेस्ट मिला कर रोग ग्रस्त पशु को नहलाएं।
– रोगी पशु को पौष्टिक चारा खिलाएं
– रोग से ग्रसित और संपर्क में आए पशु को गोटपॉक्स वैक्सीन न लगाएं।
– रोग से मृत पशु को खुले में न फेंके। इससे रोग का संक्रमण फैलने का खतरा रहता है