प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर ‘कर्तव्य पथ’ का किया उद्घाटन, कहा- नेताजी के बताए रास्ते पर चला होता तो आज नई ऊंचाई पर होता भारत
देहरादून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर ‘कर्तव्य पथ’ के उद्घाटन किया| साथ ही उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फीट की प्रतिमा का अनावरण किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत ने गुलामी के दो और प्रतीकों से मुक्ति पा ली। अब इसमें सिर्फ नए भारत का भविष्य नजर आएगा। इस अवसर पर उन्होंने आजादी के बाद नेताजी को नजरअंदाज किए जाने को लेकर कांग्रेस पर तंज भी कसा हैं|
मोदी ने कहा कि आजादी के बाद अगर देश नेताजी के बताए रास्ते पर चला होता तो आज नई ऊंचाई पर होता। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले आठ वर्ष के दौरान गुलामी के प्रतीकों को समाप्त करने के कई कदमों का विस्तार से उल्लेख भी किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर जार्ज पंचम की मूर्ति के निशान को हटाकर नेताजी की मूर्ति लगी है तो ये गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है। राजपथ ब्रिटिश राज के लिए था, जिनके लिए भारत के लोग गुलाम थे। राजपथ की भावना भी गुलामी का प्रतीक थी। उसकी संरचना भी गुलामी का प्रतीक थी। आज ‘कर्तव्य पथ’ के रूप में इसका नाम ही नहीं बदला है, बल्कि इसकी बनावट भी बदली है और इसकी आत्मा भी बदली है।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि कर्तव्य पथ केवल ईंट-पत्थरों का रास्ता भर नहीं है। ये भारत के लोकतांत्रिक अतीत और सर्वकालिक आदर्शों का जीवंत मार्ग है। यहां जब देश के लोग आएंगे तो नेताजी की प्रतिमा, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक उन्हें कितनी बड़ी प्रेरणा देंगे, उन्हें कर्तव्यबोध से ओत-प्रोत करेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ये न शुरुआत है और न अंत।। ये मन और मानस की आजादी का लक्ष्य हासिल करने तक, निरंतर चलने वाली संकल्प यात्रा है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस को याद करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले आठ वर्षों में हमने एक के बाद एक ऐसे कितने ही निर्णय लिए हैं जिन पर नेताजी के आदर्शों और सपनों की छाप है। नेताजी सुभाष, अखंड भारत के पहले प्रधान थे जिन्होंने 1947 से भी पहले अंडमान को आजाद कराकर तिरंगा फहराया था। नेताजी के प्रतीकों को नजरअंजाद किया गया हैं|
प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज नई ऊंचाइयों पर होता! लेकिन दुर्भाग्य से, आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया। उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजरअंदाज कर दिया गया। सुभाष चंद्र बोस ऐसे महामानव थे जो पद और संसाधनों की चुनौती से परे थे। उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था। उनमें साहस था, स्वाभिमान था। उनके पास विचार थे, विजन था। उनमें नेतृत्व की क्षमता थी और नीतियां थीं।